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हनुमान चालीसा: संपूर्ण हिंदी अर्थ (Hanuman Chalisa Meaning in Hindi: Detailed Explanation)
हनुमान चालीसा का पाठ तो हम सब करते हैं, पर क्या हम इसके हर शब्द में छिपी शक्ति को जानते हैं? हर चौपाई एक गहरा रहस्य और जीवन का एक महत्वपूर्ण सबक लिए हुए है।
यहाँ हमने प्रत्येक दोहे और चौपाई का हिंदी में अर्थ (Hanuman Chalisa Meaning in Hindi) सरल भाषा में समझाया है, ताकि आप बजरंगबली की महिमा को और भी गहराई से समझकर उनकी कृपा पा सकें। आइए, इस दिव्य ज्ञान को समझें ताकि आपका पाठ केवल शब्दों का उच्चारण न रहकर, एक शक्तिशाली और गहरी प्रार्थना बन जाए।
अगर आप इसका अर्थ समझकर इसका पाठ करेंगे, तो आपको भक्ति के साथ-साथ ज्ञान और शक्ति का भी जुड़ाव महसूस होगा, और Hanuman Chalisa आपके हृदय में गहराई से समा जाएगा। 🙏🙏🙏
॥ दोहा ॥ (Doha)
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि ।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि ॥
- शाब्दिक अर्थ: मैं अपने गुरुदेव के चरण-कमलों की धूल से अपने मन रूपी दर्पण को साफ करके, श्री रघुवीर (राम) के उस निर्मल यश का वर्णन करता हूँ, जो (जीवन के) चारों फल – धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष – को देने वाला है।
- भावार्थ और विस्तृत व्याख्या: यह दोहा विनम्रता और ज्ञान की तैयारी का प्रतीक है। ‘मन रूपी दर्पण’ पर जब तक अहंकार और अज्ञान की धूल जमी है, तब तक हम ईश्वर के वास्तविक स्वरूप को नहीं देख सकते। ‘गुरु के चरण-कमलों की धूल’ उस ज्ञान और विनम्रता का प्रतीक है, जो इस धूल को साफ करती है। इसके बाद ही भक्त उस ‘निर्मल यश’ का वर्णन करने के योग्य बनता है, जो न केवल भौतिक (अर्थ, काम) बल्कि आध्यात्मिक (धर्म, मोक्ष) फलों को भी प्रदान करता है।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार ।
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार ॥
- शाब्दिक अर्थ: स्वयं को बुद्धिहीन और शरीर से कमजोर जानकर, मैं पवनपुत्र श्री हनुमान का स्मरण (सुमिरन) करता हूँ। हे प्रभु! मुझे बल, बुद्धि और विद्या दीजिए और मेरे सभी क्लेशों (दुःखों) और विकारों (दोषों) को हर लीजिए।
- भावार्थ और विस्तृत व्याख्या: यहाँ भक्त का ‘बुद्धिहीन’ कहना उसकी विनम्रता का चरम है। वह जानता है कि सांसारिक बुद्धि ईश्वर को जानने के लिए अपर्याप्त है। इसलिए, वह हनुमान जी से तीन चीजें मांगता है: बल (शारीरिक शक्ति और आत्मबल), बुद्धि (सही-गलत का निर्णय लेने की क्षमता, विवेक) और विद्या (आध्यात्मिक ज्ञान)। ‘कलेस’ बाहरी दुख हैं (जैसे रोग, गरीबी), जबकि ‘बिकार’ आंतरिक दोष हैं (जैसे काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार)। यह प्रार्थना भक्त के सर्वांगीण विकास के लिए है।
॥ चौपाई ॥ (Chaupai) 01-10
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर ।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥1॥
- शाब्दिक अर्थ: हे हनुमान! आपकी जय हो! आप ज्ञान और गुणों के सागर हैं। हे कपीश (वानरों के राजा), आपकी जय हो! आपकी कीर्ति तीनों लोकों (स्वर्ग, पृथ्वी, पाताल) में उजागर है।
- भावार्थ और विस्तृत व्याख्या: ‘ज्ञान गुन सागर’ का अर्थ केवल ज्ञानी होना नहीं है, बल्कि ज्ञान और गुणों का अथाह महासागर होना है, जिसकी कोई सीमा नहीं है। ‘कपीस’ कहकर भक्त उनके नेतृत्व क्षमता को नमन करता है। ‘तिहुँ लोक उजागर’ का अर्थ है कि आपका प्रभाव और प्रकाश सिर्फ इस धरती तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे ब्रह्मांड को अज्ञान के अंधकार से निकालकर प्रकाशित करता है। यह चौपाई भक्त को विश्वास दिलाती है कि वह एक ऐसे प्रभु की शरण में है, जिनका ज्ञान और प्रभाव असीम है।
राम दूत अतुलित बल धामा ।
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा ॥2॥
- शाब्दिक अर्थ: आप श्री राम के दूत हैं, अतुलनीय शक्ति के धाम (घर) हैं, और आपको अंजनी-पुत्र और पवनसुत के नाम से जाना जाता है।
- भावार्थ और विस्तृत व्याख्या: यहाँ हनुमान जी की पहचान स्थापित की गई है। उनकी सबसे पहली और प्रमुख पहचान ‘राम दूत’ है, जो यह सिखाती है कि उनकी सारी शक्ति और अस्तित्व का उद्देश्य केवल राम-सेवा है। ‘अतुलित बल धामा’ का अर्थ है कि वे केवल शक्तिशाली नहीं, बल्कि शक्ति के स्रोत हैं, जिनकी तुलना किसी से नहीं हो सकती। ‘अंजनि-पुत्र’ उनका मानवीय और ‘पवनसुत’ उनका दिव्य संबंध दर्शाता है, जो यह बताता है कि वे धरती और आकाश, दोनों की शक्तियों का संगम हैं।
महाबीर बिक्रम बजरंगी ।
कुमति निवार सुमति के संगी ॥3॥
- शाब्दिक अर्थ: हे महावीर! आप महान पराक्रमी हैं, वज्र के समान अंगों वाले (बजरंगी) हैं। आप बुरी बुद्धि (कुमति) का नाश करने वाले और अच्छी बुद्धि (सुमति) वालों के साथी हैं।
- भावार्थ और विस्तृत व्याख्या: ‘महाबीर’ शब्द उनकी अद्वितीय वीरता और प्रचंड शक्ति को दर्शाता है, जबकि ‘बजरंगी’ उनके वज्र-तुल्य दृढ़ शरीर और संकल्प को उजागर करता है। यह चौपाई हनुमान जी के सिर्फ शारीरिक बल को ही नहीं, बल्कि उनके मानसिक और आध्यात्मिक प्रभाव को भी बताती है। वे केवल शत्रुओं का नाश नहीं करते, बल्कि अज्ञान और भ्रम रूपी कुबुद्धि को भी दूर करते हैं, और हमें सत्य, धर्म और विवेक के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं। उनकी संगति से व्यक्ति का मन शुद्ध होता है और उसे सही-गलत का बोध होता है।
कंचन बरन बिराज सुबेसा ।
कानन कुंडल कुंचित केसा ॥4॥
- शाब्दिक अर्थ: आपका वर्ण (रंग) सोने जैसा है और आप सुंदर वेशभूषा में सुशोभित हैं। आपके कानों में कुंडल हैं और आपके बाल घुंघराले हैं।
- भावार्थ और विस्तृत व्याख्या: यह चौपाई हनुमान जी के दिव्य, आकर्षक और तेजस्वी स्वरूप का वर्णन करती है। ‘कंचन बरन’ उनके शुद्ध, पवित्र और अलौकिक तेज को दर्शाता है, जो सूर्य के समान प्रकाशमान है। उनकी ‘सुंदर वेशभूषा’, ‘कुंडल’ और ‘घुंघराले केश’ उनकी मनमोहक छवि को पूर्ण करते हैं, जिसे देखकर भक्त आनंदित और प्रेरित होता है। यह वर्णन भक्तों को उनके ध्यान करने में सहायता करता है और उन्हें यह विश्वास दिलाता है कि हनुमान जी का स्वरूप अत्यंत भव्य और प्रभावशाली है।
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै ।
काँधे मूँज जनेऊ साजै ॥5॥
- शाब्दिक अर्थ: आपके एक हाथ में वज्र और दूसरे में ध्वजा (पताका) सुशोभित है। आपके कंधे पर मूँज का जनेऊ (यज्ञोपवीत) शोभा दे रहा है।
- भावार्थ और विस्तृत व्याख्या: यह चौपाई हनुमान जी के प्रतीकात्मक स्वरूप को स्पष्ट करती है। ‘बज्र’ उनकी अदम्य शक्ति, दृढ़ता और शत्रुओं का नाश करने की क्षमता का प्रतीक है, जबकि ‘ध्वजा’ उनकी विजय, यश और धर्म की स्थापना का सूचक है। कंधे पर ‘मूँज का जनेऊ’ उनके ब्रह्मचर्य, पवित्रता, अनुशासन और वेद-ज्ञान को दर्शाता है। यह दर्शाता है कि हनुमान जी सिर्फ बलशाली ही नहीं, बल्कि परम ज्ञानी, संयमी और धर्मनिष्ठ भी हैं, जो शक्ति को धर्म के मार्ग पर उपयोग करते हैं।
संकर सुवन केसरीनंदन ।
तेज प्रताप महा जग बंदन ॥6॥
- शाब्दिक अर्थ: आप भगवान शंकर के अंश (सुवन) और केसरी नंदन (केसरी के पुत्र) हैं। आपका तेज और प्रताप इतना महान है कि सारा संसार आपकी वंदना करता है।
- भावार्थ और विस्तृत व्याख्या: यह चौपाई हनुमान जी की दिव्य उत्पत्ति और उनके अतुलनीय प्रभाव को स्थापित करती है। ‘संकर सुवन’ कहकर उन्हें भगवान शिव का अवतार बताया गया है, जो उनकी असीम शक्तियों और आध्यात्मिक गहराई का स्रोत है। ‘केसरीनंदन’ उनके लौकिक परिचय को पूर्ण करता है। उनके ‘तेज प्रताप’ का अर्थ है उनकी आभा, प्रभाव और शौर्य, जिसकी महिमा तीनों लोकों में व्याप्त है। समस्त जगत उनका सम्मान और पूजन करता है, जो उनकी सार्वभौमिक स्वीकार्यता और पूजनीयता को दर्शाता है।
बिद्यावान गुनी अति चातुर ।
राम काज करिबे को आतुर ॥7॥
- शाब्दिक अर्थ: आप विद्याओं के ज्ञाता, गुणों से युक्त और अत्यंत चतुर हैं। आप श्री राम के कार्य को करने के लिए सदैव आतुर रहते हैं।
- भावार्थ और विस्तृत व्याख्या: यह चौपाई हनुमान जी की बौद्धिक और व्यवहारिक उत्कृष्टता को रेखांकित करती है। ‘विद्यावान’ होने का अर्थ है सभी शास्त्रों, कलाओं और विज्ञानों का ज्ञाता होना। ‘गुनी’ होना उनके उत्तम चरित्र और गुणों (जैसे विनम्रता, धैर्य, विवेक) को दर्शाता है। ‘अति चातुर’ उनकी बुद्धिमत्ता, कूटनीति और विषम परिस्थितियों में सही निर्णय लेने की क्षमता को दर्शाता है। इन सभी गुणों का एकमात्र लक्ष्य ‘राम काज करिबे को आतुर’ होना है, जो उनकी निस्वार्थ सेवाभाव और अपने आराध्य के प्रति अटूट समर्पण को दर्शाता है। यह सिखाता है कि वास्तविक ज्ञान और कौशल वही है जो किसी उच्च उद्देश्य या सेवा में लगाया जाए।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया ।
राम लखन सीता मन बसिया ॥8॥
- शाब्दिक अर्थ: आपको प्रभु (श्री राम) का चरित्र (कथा) सुनने में अत्यंत आनंद आता है (रस मिलता है)। श्री राम, लक्ष्मण और माता सीता आपके मन में सदैव बसे रहते हैं।
- भावार्थ और विस्तृत व्याख्या: यह चौपाई हनुमान जी की भक्ति की गहराई को दर्शाती है। एक सच्चा भक्त केवल सेवा ही नहीं करता, बल्कि अपने आराध्य की लीलाओं और कथाओं के श्रवण में भी परम आनंद का अनुभव करता है। हनुमान जी के लिए राम-कथा ही सबसे बड़ा रस है। दूसरी पंक्ति ‘राम लखन सीता मन बसिया’ इसका प्रमाण है कि उनका हृदय केवल एक भक्त का हृदय नहीं, बल्कि एक मंदिर है, जिसमें उनका संपूर्ण आराध्य परिवार (श्री राम, लक्ष्मण और सीता जी) निवास करता है। यह सिखाता है कि भक्ति का अर्थ है अपने आराध्य को अपने मन और आत्मा में पूरी तरह से बसा लेना।
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा ।
बिकट रूप धरि लंक जरावा ॥9॥
- शाब्दिक अर्थ: आपने अत्यंत छोटा (सूक्ष्म) रूप धारण करके माता सीता को (अशोक वाटिका में) दर्शन दिए, और फिर भयंकर (बिकट) रूप धारण करके लंका को जला दिया।
- भावार्थ और विस्तृत व्याख्या: यह चौपाई हनुमान जी की योगिक शक्तियों (अष्ट सिद्धियों) और उनके विवेकपूर्ण उपयोग को दर्शाती है। उन्होंने माता सीता को सांत्वना देने के लिए ‘अणिमा’ सिद्धि का प्रयोग कर छोटा रूप धारण किया, ताकि राक्षसों की नजरों से बचकर वे सीता जी को भयभीत किए बिना मिल सकें। वहीं, शत्रुओं में भय पैदा करने और उन्हें दंडित करने के लिए उन्होंने ‘महिमा’ सिद्धि का प्रयोग कर विशाल और विकराल रूप धारण किया। यह सिखाता है कि शक्ति का उपयोग कब, कहाँ और कैसे करना है, इसका विवेक होना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
भीम रूप धरि असुर सँहारे ।
रामचंद्र के काज सँवारे ॥10॥
- शाब्दिक अर्थ: आपने भीम जैसा (विशाल और शक्तिशाली) रूप धारण करके राक्षसों का संहार किया और इस प्रकार श्री रामचंद्र जी के कार्यों को सफल बनाया।
- भावार्थ और विस्तृत व्याख्या: ‘भीम रूप’ यहाँ अत्यधिक बल और पराक्रम का प्रतीक है। हनुमान जी ने अपनी इस प्रचंड शक्ति का उपयोग अधर्म और अत्याचार के प्रतीक राक्षसों का विनाश करने के लिए किया। लेकिन इस चौपाई का सार दूसरी पंक्ति में है – ‘रामचंद्र के काज सँवारे’। यह स्पष्ट करता है कि उनके द्वारा किया गया हर विनाशकारी कार्य भी व्यक्तिगत क्रोध या अहंकार के लिए नहीं, बल्कि धर्म की स्थापना और अपने स्वामी के कार्य को सिद्ध करने के लिए था। यह कर्मयोग का उत्कृष्ट उदाहरण है, जहाँ शक्ति का उपयोग निस्वार्थ सेवा के लिए किया जाता है।
॥ चौपाई ॥ (Chaupai) 11-20
लाय सजीवन लखन जियाये ।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये ॥11॥
- शाब्दिक अर्थ: आप संजीवनी बूटी लाकर आपने लक्ष्मण जी को पुनर्जीवित किया। इससे श्री रघुवीर (राम) ने अत्यंत प्रसन्न होकर आपको हृदय से लगा लिया।
- भावार्थ और विस्तृत व्याख्या: यह प्रसंग हनुमान जी की अटूट निष्ठा और समय पर कार्य करने की क्षमता को दर्शाता है। वे केवल शक्तिशाली ही नहीं, बल्कि बुद्धिमान और समर्पित भी हैं। जब वे बूटी पहचान नहीं पाए, तो उन्होंने अहंकार या संकोच नहीं किया, बल्कि पूरे पर्वत को ही उठा लाए। यह उनके ‘कार्य-सिद्धि’ के संकल्प को दिखाता है। इस अविश्वसनीय कार्य के बदले में श्री राम का उन्हें ‘हृदय से लगाना’ एक भक्त के लिए सबसे बड़ा पुरस्कार है। यह भगवान के प्रेम, कृतज्ञता और भक्त के प्रति उनके गहरे लगाव का प्रतीक है।
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई ।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥12॥
- शाब्दिक अर्थ: रघुपति (श्री राम) ने आपकी बहुत प्रशंसा की और कहा, “तुम मुझे मेरे भाई भरत के समान ही प्रिय हो।”
- भावार्थ और विस्तृत व्याख्या: यह चौपाई भक्त और भगवान के रिश्ते की पराकाष्ठा है। यहाँ भगवान अपने सेवक को दास या भक्त के पद से उठाकर अपने ‘भाई’ का दर्जा दे रहे हैं, और वह भी भरत के समान, जिनकी अपनी भक्ति और त्याग एक मिसाल थी। यह दर्शाता है कि निस्वार्थ और शुद्ध भक्ति सभी भेदों को मिटा देती है। हनुमान जी की सेवा इतनी निर्मल थी कि उन्होंने भगवान के हृदय में वह स्थान प्राप्त कर लिया जो उनके प्रिय भाई का था। यह किसी भी भक्त के लिए सर्वोच्च सम्मान और उसकी भक्ति की अंतिम सफलता है।
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं ।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं ॥13॥
- शाब्दिक अर्थ: “हजारों मुखों वाले शेषनाग भी तुम्हारे यश का गान करते हैं,” ऐसा कहकर श्रीपति (श्री राम) आपको अपने कंठ से लगा लेते हैं।
- भावार्थ और विस्तृत व्याख्या: शेषनाग, जिनके सहस्र मुख हैं और जो स्वयं भगवान विष्णु के आसन हैं, अनंत काल और संपूर्ण ब्रह्मांड के प्रतीक हैं। जब वे हनुमान जी का यश गाते हैं, तो इसका अर्थ है कि हनुमान जी की कीर्ति अनंत और शाश्वत है, जो पूरे ब्रह्मांड में गूंजती है। श्री राम का यह कहकर हनुमान जी को पुनः गले लगाना, उनकी भक्ति की सर्वोच्च स्वीकृति है। यह दर्शाता है कि भगवान अपने भक्त के यश को सुनकर उतना ही आनंदित होते हैं जितना स्वयं की प्रशंसा सुनकर।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा ।
नारद सारद सहित अहीसा ॥14॥
- शाब्दिक अर्थ: सनक आदि ऋषिगण, ब्रह्मा आदि देवता, महान मुनि, नारद, देवी सरस्वती और शेषनाग (अहीसा)।
- भावार्थ और विस्तृत व्याख्या: यह चौपाई केवल एक सूची नहीं है, बल्कि यह हनुमान जी की महिमा की सार्वभौमिक स्वीकृति को दर्शाती है। इसमें सृष्टि के सर्वोच्च ज्ञानी (सनकादि ऋषि), सृष्टि के रचयिता (ब्रह्मा), प्रमुख देवर्षि (नारद), ज्ञान और कला की देवी (सरस्वती) और ब्रह्मांड के आधार (शेषनाग) का उल्लेख है। इसका अर्थ है कि हनुमान जी का गुणगान केवल मनुष्य ही नहीं, बल्कि देवलोक और ब्रह्मलोक के सर्वोच्च ज्ञानी, देवता और दिव्य शक्तियाँ भी करती हैं। उनकी कीर्ति को ज्ञान, शक्ति और सृष्टि के हर स्तर पर सम्मान प्राप्त है।
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते ।
कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते ॥15॥
- शाब्दिक अर्थ: यमराज (मृत्यु के देवता), कुबेर (धन के देवता) और सभी दिशाओं के रक्षक (दिगपाल) भी जहाँ (आपके यश का) वर्णन नहीं कर सकते, वहाँ (साधारण) कवि और विद्वान भला कैसे कह सकते हैं?
- भावार्थ और विस्तृत व्याख्या: यह चौपाई हनुमान जी की महिमा की असीमता को व्यक्त करने के लिए एक अलंकारिक प्रश्न का उपयोग करती है। इसका भाव यह है कि हनुमान जी का यश इतना गहरा और विशाल है कि उसे शब्दों में बांधना असंभव है। यदि ब्रह्मांड के विधान को चलाने वाले शक्तिशाली देवता (यम, कुबेर, दिगपाल) भी उसे पूरी तरह व्यक्त नहीं कर सकते, तो फिर मनुष्यों (कवि, विद्वान) की तो क्षमता ही क्या है? यह भक्त को यह एहसास कराता है कि हम उनकी महिमा का जो भी वर्णन करते हैं, वह उस विशाल सागर की एक बूंद मात्र है।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा ।
राम मिलाय राज पद दीन्हा ॥16॥
- शाब्दिक अर्थ: आपने सुग्रीव पर महान उपकार किया; उन्हें श्री राम से मिलवाया और (किष्किंधा का) राज पद दिलाया।
- भावार्थ और विस्तृत व्याख्या: यह चौपाई हनुमान जी की भूमिका को एक कुशल मध्यस्थ, सच्चे मित्र और महान रणनीतिकार के रूप में दर्शाती है। उन्होंने न केवल निराश और भयभीत सुग्रीव को श्री राम से मिलाकर एक भक्त को भगवान से जोड़ा, बल्कि धर्म की स्थापना के लिए एक महत्वपूर्ण गठबंधन भी बनाया। सुग्रीव को उनका राज्य वापस दिलाना यह दिखाता है कि हनुमान जी की कृपा से भक्त को न केवल आध्यात्मिक शांति मिलती है, बल्कि उसके सांसारिक कष्ट भी दूर होते हैं और उसे सम्मान और अधिकार पुनः प्राप्त होता है।
तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना ।
लंकेस्वर भए सब जग जाना ॥17॥
- शाब्दिक अर्थ: आपके ‘मंत्र’ (परामर्श) को विभीषण ने माना, जिसके फलस्वरूप वे लंका के राजा बने, यह बात सारा संसार जानता है।
- भावार्थ और विस्तृत व्याख्या: यहाँ ‘मंत्र’ का अर्थ केवल शब्द नहीं, बल्कि ‘सही और धर्मयुक्त सलाह’ है। अधर्म के पक्ष में होने के बावजूद, विभीषण ने हनुमान जी के धर्मयुक्त परामर्श पर विश्वास किया और श्री राम की शरण ली। इसका परिणाम यह हुआ कि न केवल उनका उद्धार हुआ, बल्कि उन्हें लंका का राज्य भी मिला। यह चौपाई सिखाती है कि हनुमान जी का परामर्श जीवन की सही दिशा दिखाता है। उनकी सलाह मानने वाला व्यक्ति कठिन परिस्थितियों से निकलकर सफलता और सम्मान प्राप्त करता है। यह हनुमान जी की शक्ति के साथ-साथ उनकी असाधारण बुद्धि और विवेक को भी प्रमाणित करता है।
जुग सहस्र जोजन पर भानू ।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥18॥
- शाब्दिक अर्थ: जो सूर्य (भानु) युग, सहस्र और योजन की दूरी पर स्थित है, उसे आपने एक मीठा फल समझकर निगल लिया।
- भावार्थ और विस्तृत व्याख्या: यह चौपाई हनुमान जी की जन्मजात दिव्य शक्तियों और उनके बाल-सुलभ स्वभाव का एक अद्भुत मिश्रण प्रस्तुत करती है। युग, सहस्र और योजन की गणना पृथ्वी से सूर्य की दूरी को इंगित करती है, जो उनकी छलांग की असीमित क्षमता को दर्शाती है। उनका सूर्य को ‘मीठा फल’ समझना उनके निर्दोष बाल्यकाल को दिखाता है, लेकिन उसे निगलने का प्रयास उनकी अकल्पनीय शक्ति का प्रमाण है। यह घटना दर्शाती है कि हनुमान जी बचपन से ही भय से परे और असाधारण शक्तियों के स्वामी थे।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं ।
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ॥19॥
- शाब्दिक अर्थ: प्रभु श्री राम की अंगूठी (मुद्रिका) को मुख में रखकर, आप समुद्र (जलधि) को लांघ गए, इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है।
- भावार्थ और विस्तृत व्याख्या: यह चौपाई एक गहरे आध्यात्मिक रहस्य को उजागर करती है। समुद्र लांघना केवल एक शारीरिक शक्ति का प्रदर्शन नहीं था, बल्कि यह अटूट विश्वास और भक्ति की शक्ति का परिणाम था। ‘प्रभु मुद्रिका’ केवल एक पहचान चिह्न नहीं, बल्कि श्री राम के नाम, आशीर्वाद और शक्ति का प्रतीक थी। उसे मुख में रखना यह दर्शाता है कि हनुमान जी ने राम-नाम को अपनी सांसों में बसा लिया था। इसलिए तुलसीदास जी कहते हैं ‘अचरज नाहीं’, क्योंकि जिसके पास राम-नाम की शक्ति हो, उसके लिए कोई भी कार्य असंभव नहीं है।
दुर्गम काज जगत के जेते ।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥20॥
- शाब्दिक अर्थ: इस संसार में जितने भी कठिन (दुर्गम) कार्य हैं, वे सभी आपकी कृपा (अनुग्रह) से आसान (सुगम) हो जाते हैं।
- भावार्थ और विस्तृत व्याख्या: यह चौपाई भक्तों के लिए एक महान आश्वासन और चालीसा के सबसे शक्तिशाली फलों में से एक है। ‘दुर्गम काज’ का अर्थ केवल सांसारिक कठिनाइयां ही नहीं, बल्कि आध्यात्मिक बाधाएं, मानसिक चिंताएं और जीवन की सभी चुनौतियां हैं। हनुमान जी की कृपा से ये बाधाएं समाप्त नहीं होतीं, बल्कि भक्त को उन्हें पार करने की शक्ति, बुद्धि और मार्ग मिल जाता है, जिससे वे आसान लगने लगती हैं। यह पद सिखाता है कि हमें समस्याओं से घबराने की बजाय हनुमान जी की कृपा प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए।
॥ चौपाई ॥ (Chaupai) 21-30
राम दुआरे तुम रखवारे ।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥21॥
- शाब्दिक अर्थ: आप श्री राम के द्वार के रखवाले हैं। आपकी आज्ञा के बिना (उसमें) किसी को प्रवेश नहीं मिल सकता।
- भावार्थ और विस्तृत व्याख्या: इस चौपाई का आध्यात्मिक अर्थ बहुत गहरा है। ‘राम दुआरे’ का अर्थ केवल अयोध्या का राजद्वार नहीं, बल्कि साकेत धाम, वैकुंठ, या मोक्ष का द्वार है। इसका भाव यह है कि श्री राम तक पहुंचने के लिए, उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए, हनुमान जी की प्रसन्नता और अनुमति अनिवार्य है। हनुमान जी उस गुरु-तत्व के प्रतीक हैं, जिनकी कृपा के बिना ईश्वर-प्राप्ति का मार्ग नहीं खुलता। वे भक्त की पात्रता और sincerity की परीक्षा लेते हैं और योग्य भक्त को प्रभु तक पहुंचाते हैं।
सब सुख लहै तुम्हारी सरना ।
तुम रक्षक काहू को डर ना ॥22॥
- शाब्दिक अर्थ: जो भी आपकी शरण में आता है, उसे सभी सुख प्राप्त हो जाते हैं। जब आप रक्षक हैं, तो फिर किसी का भी डर नहीं रहता।
- भावार्थ और विस्तृत व्याख्या: यह चौपाई ‘अभयदान’ का वचन है। ‘सरना’ यानी शरण में आने का अर्थ है पूर्ण समर्पण – अपने अहंकार और चिंताओं को हनुमान जी के चरणों में सौंप देना। जब भक्त ऐसा करता है, तो उसे ‘सब सुख’ मिलते हैं, जिसमें भौतिक सुख और आत्मिक शांति दोनों शामिल हैं। दूसरी पंक्ति इस सुख का कारण बताती है – जब रक्षक स्वयं हनुमान जी हों, तो भय का कोई स्थान नहीं रह जाता। यह भय शत्रुओं का, परिस्थितियों का, असफलता का या स्वयं मृत्यु का भी हो सकता है। हनुमान जी की शरण में भक्त निर्भय हो जाता है।
आपन तेज सम्हारो आपै ।
तीनों लोक हाँक तें काँपै ॥23॥
- शाब्दिक अर्थ: आप अपने तेज (शक्ति) को स्वयं ही संभाल सकते हैं। आपकी एक हुंकार (गर्जना) से तीनों लोक कांप उठते हैं।
- भावार्थ और विस्तृत व्याख्या: यह चौपाई हनुमान जी की असीम और प्रचंड शक्ति को दर्शाती है। उनका तेज और बल इतना अधिक है कि उसे धारण करने या संभालने की क्षमता किसी और में नहीं है; केवल वे स्वयं ही उसे नियंत्रित कर सकते हैं। ‘हाँक तें काँपै’ का अर्थ केवल एक गर्जना नहीं, बल्कि उनकी शक्ति की वह घोषणा है जिससे दुष्ट शक्तियों का हृदय कांप उठता है और ब्रह्मांड में धर्म की सत्ता स्थापित होती है। यह भक्त को यह विश्वास दिलाता है कि वह एक ऐसी परम शक्ति की शरण में है, जिसके सामने कोई भी नकारात्मक शक्ति टिक नहीं सकती।
भूत पिसाच निकट नहिं आवै ।
महाबीर जब नाम सुनावै ॥24॥
- शाब्दिक अर्थ: जब कोई भक्त महावीर हनुमान का नाम सुनाता (या जपता) है, तो भूत-पिशाच जैसी नकारात्मक शक्तियां उसके पास भी नहीं आतीं।
- भावार्थ और विस्तृत व्याख्या: यह चौपाई एक शक्तिशाली रक्षा-मंत्र और हनुमान भक्ति का प्रत्यक्ष लाभ बताती है। ‘भूत-पिशाच’ केवल अलौकिक बुरी शक्तियां ही नहीं, बल्कि हमारे मन के अंदर के भय, चिंता, और सभी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जाओं का भी प्रतीक हैं। हनुमान जी का नाम जपना या सुनना एक ऐसा सुरक्षा कवच बना देता है, जिसे ये नकारात्मक शक्तियां भेद नहीं पातीं। यह दिखाता है कि ‘नाम-स्मरण’ में कितनी शक्ति है और यह भक्तों को सभी प्रकार के ज्ञात और अज्ञात भयों से मुक्ति दिलाता है।
नासै रोग हरै सब पीरा ।
जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥25॥
- शाब्दिक अर्थ: जो कोई भी वीर हनुमान का नाम निरंतर जपता रहता है, उसके रोग नष्ट हो जाते हैं और सभी प्रकार की पीड़ाएं दूर हो जाती हैं।
- भावार्थ और विस्तृत व्याख्या: यह पद हनुमान-भक्ति के स्वास्थ्य-संबंधी लाभों को उजागर करता है। यहाँ ‘रोग’ का अर्थ शारीरिक व्याधियां हैं और ‘पीरा’ (पीड़ा) का अर्थ शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक सभी प्रकार के कष्टों से है। इस चौपाई की कुंजी ‘जपत निरंतर’ शब्द में है, जिसका अर्थ है – लगातार और अटूट विश्वास के साथ जपना। यह सिखाता है कि भक्ति केवल एक सामयिक उपाय नहीं, बल्कि एक सतत साधना है। इस निरंतर साधना से भक्त में ऐसी सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है जो रोगों से लड़ने की शक्ति देती है और मन को शांत कर पीड़ाओं को हर लेती है।
संकट तें हनुमान छुड़ावै ।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥26॥
- शाब्दिक अर्थ: जो कोई भी मन, कर्म और वचन से हनुमान जी का ध्यान करता है, हनुमान जी उसे हर संकट से छुड़ा लेते हैं।
- भावार्थ और विस्तृत व्याख्या: यह एक सार्वभौमिक आश्वासन है कि हनुमान जी हर संकट से मुक्ति दिलाते हैं। लेकिन इसके लिए एक शर्त है – सच्ची और समग्र भक्ति। ‘मन, क्रम (कर्म), बचन’ का अर्थ है कि भक्त की सोच, उसके कार्य और उसकी वाणी, तीनों में एकरूपता हो और वे सभी ईश्वर को समर्पित हों। जब व्यक्ति मन में हनुमान जी का चिंतन करता है, अपने कर्मों को धर्मानुसार करता है और अपनी वाणी से उनका गुणगान करता है, तो उसकी भक्ति पूर्ण मानी जाती है। ऐसी सच्ची भक्ति पर हनुमान जी अवश्य कृपा करते हैं और उसे हर विपत्ति से बाहर निकालते हैं।
सब पर राम तपस्वी राजा ।
तिन के काज सकल तुम साजा ॥27॥
- शाब्दिक अर्थ: तपस्वी राजा श्री राम सबसे श्रेष्ठ और सबके स्वामी हैं, और आपने उनके सभी कार्यों को पूर्ण किया (संवारा) है।
- भावार्थ और विस्तृत व्याख्या: यह चौपाई हनुमान जी की महानता के स्रोत को पुनः स्थापित करती है – जो कि श्री राम हैं। यह बताती है कि ब्रह्मांड में सर्वोच्च सत्ता ‘तपस्वी राजा’ श्री राम की है, जो धर्म और त्याग के प्रतीक हैं। हनुमान जी की सारी कीर्ति और पराक्रम इसी बात में निहित है कि उन्होंने उस सर्वोच्च सत्ता के हर कार्य को पूरी निपुणता और समर्पण से सफल बनाया। यह हनुमान जी की विनम्रता और स्वामी-भक्ति का आदर्श उदाहरण है। यह सिखाता है कि महानता स्वयं के लिए कुछ करने में नहीं, बल्कि किसी महान उद्देश्य या आदर्श के लिए स्वयं को समर्पित कर देने में है।
और मनोरथ जो कोई लावै ।
सोइ अमित जीवन फल पावै ॥28॥
- शाब्दिक अर्थ: (राम-भक्ति के अलावा) जो कोई अन्य सांसारिक इच्छा (मनोरथ) भी लेकर आपके पास आता है, वह भी जीवन में उसका असीमित फल प्राप्त करता है।
- भावार्थ और विस्तृत व्याख्या: यह चौपाई हनुमान जी की उदारता और करुणा को दर्शाती है। वे केवल मोक्ष चाहने वाले आध्यात्मिक साधकों की ही नहीं, बल्कि सांसारिक इच्छाएं रखने वाले सामान्य भक्तों की भी सुनते हैं। ‘अमित जीवन फल’ का अर्थ केवल इच्छा की पूर्ति नहीं है, बल्कि उस इच्छा की पूर्ति के साथ जीवन में स्थायी सुख और संतोष का भी मिलना है। हनुमान जी भक्त को वह देते हैं जो वह मांगता है, लेकिन साथ में वह भी देते हैं जो उसके लिए वास्तव में कल्याणकारी होता है।
चारों जुग परताप तुम्हारा ।
है परसिद्ध जगत उजियारा ॥29॥
- शाब्दिक अर्थ: चारों युगों (सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग, कलियुग) में आपका प्रताप (महिमा और प्रभाव) व्याप्त है। आपकी प्रसिद्धि जगत में प्रकाश फैलाने वाली है।
- भावार्थ और विस्तृत व्याख्या: यह चौपाई हनुमान जी की चिरंजीवी (अमर) स्थिति और उनकी सार्वकालिक प्रासंगिकता को उजागर करती है। उनका प्रभाव केवल त्रेता युग तक सीमित नहीं है, बल्कि वे हर युग में भक्तों की सहायता के लिए उपस्थित रहते हैं, विशेषकर कलियुग में, जहाँ उनकी भक्ति को अत्यंत फलदायी माना गया है। ‘जगत उजियारा’ का अर्थ है कि उनकी कीर्ति और उनका चरित्र अज्ञान, पाप और निराशा के अंधकार को दूर कर ज्ञान, धर्म और आशा का प्रकाश फैलाता है।
साधु-संत के तुम रखवारे ।
असुर निकंदन राम दुलारे ॥30॥
- शाब्दिक अर्थ: आप साधु-संतों और सज्जनों की रक्षा करने वाले हैं, दुष्टों (असुरों) का विनाश करने वाले हैं, और आप श्री राम के अत्यंत प्रिय हैं।
- भावार्थ और विस्तृत व्याख्या: यह चौपाई धर्म की स्थापना के लिए हनुमान जी की दोहरी भूमिका को स्पष्ट करती है। एक ओर, वे धर्म के पथ पर चलने वाले सज्जनों (साधु-संत) के लिए एक सुरक्षा कवच हैं। दूसरी ओर, वे अधर्म और आसुरी प्रवृत्तियों का समूल नाश करने वाले (‘असुर निकंदन’) हैं। उनकी ये दोनों भूमिकाएं उनके व्यक्तिगत निर्णय से नहीं, बल्कि श्री राम के प्रति उनकी भक्ति (‘राम दुलारे’) से प्रेरित हैं। वे दैवीय न्याय के एक माध्यम के रूप में कार्य करते हैं, जो अच्छाई की रक्षा और बुराई का दमन करते हैं।
॥ चौपाई ॥ (Chaupai) 31-40
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता ।
अस बर दीन जानकी माता ॥31॥
- शाब्दिक अर्थ: आप आठों सिद्धियों और नौ निधियों को प्रदान करने वाले दाता हैं। ऐसा वरदान आपको माता जानकी (सीता जी) ने दिया है।
- भावार्थ और विस्तृत व्याख्या: यह चौपाई हनुमान जी की उस अद्भुत क्षमता का स्रोत बताती है, जिससे वे अपने भक्तों को कुछ भी प्रदान कर सकते हैं। ‘अष्ट सिद्धि’ अलौकिक योगिक शक्तियाँ हैं (जैसे अणु बनना, विशाल होना) और ‘नौ निधि’ धन के देवता कुबेर के नौ दिव्य खजाने हैं, जो सभी प्रकार के सांसारिक और आध्यात्मिक ऐश्वर्य के प्रतीक हैं। अशोक वाटिका में हनुमान जी की सेवा और भक्ति से प्रसन्न होकर, स्वयं आदिशक्ति स्वरूपा माता सीता ने उन्हें इन शक्तियों का ‘दाता’ होने का वरदान दिया। यह दर्शाता है कि सर्वोच्च स्त्री शक्ति (शक्ति) ने उन्हें भक्तों का कल्याण करने के लिए अधिकृत किया है।
राम रसायन तुम्हरे पासा ।
सदा रहो रघुपति के दासा ॥32॥
- शाब्दिक अर्थ: आपके पास राम-नाम रूपी दिव्य औषधि (रसायन) है। (इतना सब कुछ होने पर भी) आप सदैव श्री रघुनाथ जी के दास बने रहते हैं।
- भावार्थ और विस्तृत व्याख्या: ‘राम रसायन’ संसार की सबसे शक्तिशाली औषधि है – यह राम-नाम और उनकी भक्ति का वह अमृत है जो जन्म-मृत्यु के सबसे बड़े रोग (भव-रोग) को भी ठीक कर देता है। हनुमान जी इस अमृत के भंडार हैं। लेकिन इस चौपाई का सबसे गहरा रहस्य दूसरी पंक्ति में है। सभी सिद्धियों, निधियों और शक्तियों के स्वामी होने के बावजूद, हनुमान जी की सबसे प्रिय पहचान ‘रघुपति के दास’ बने रहना है। यह भक्ति की पराकाष्ठा है, जहाँ भक्त के लिए सबसे बड़ा पद अपने प्रभु का दास होना है। यह हमें सिखाता है कि सच्ची महानता शक्तियों को प्राप्त करने में नहीं, बल्कि विनम्रता और निस्वार्थ सेवा में है।
तुम्हरे भजन राम को पावै ।
जनम-जनम के दुख बिसरावै ॥33॥
- शाब्दिक अर्थ: आपका भजन करने से भक्त श्री राम को प्राप्त कर लेता है और अपने जन्म-जन्मांतर के दुखों को भूल जाता है (अर्थात उनसे मुक्त हो जाता है)।
- भावार्थ और विस्तृत व्याख्या: यह चौपाई हनुमान जी को राम-प्राप्ति का माध्यम बताती है। आपका भजन करने का अर्थ केवल आपका गुणगान करना नहीं, बल्कि आपके जैसे निस्वार्थ भक्ति के मार्ग पर चलना है। जब भक्त ऐसा करता है, तो ईश्वर-प्राप्ति का मार्ग स्वतः ही खुल जाता है। ‘जन्म-जन्म के दुख’ हमारे संचित कर्मों का परिणाम होते हैं। हनुमान जी की भक्ति उन कर्मों के बंधन को काटने की शक्ति रखती है, जिससे भक्त संसार के दुखों और जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाता है।
अंत काल रघुबर पुर जाई ।
जहाँ जन्म हरि-भक्त कहाई ॥34॥
- शाब्दिक अर्थ: (आपका भक्त) जीवन के अंत समय में श्री राम के धाम (रघुबर पुर) को जाता है। और यदि उसका फिर से जन्म होता भी है, तो वह हरि-भक्त के रूप में ही जाना जाता है।
- भावार्थ और विस्तृत व्याख्या: यह पद भक्त के लिए दो सर्वोत्तम गतियों का आश्वासन देता है। पहला, परम गति यानी मोक्ष, जिसमें भक्त सीधे श्री राम के दिव्य धाम (साकेत लोक) को प्राप्त होता है। दूसरा, यदि कर्म शेष रह भी जाएं, तो उसे एक ऐसी श्रेष्ठ योनि में जन्म मिलता है, जहाँ वह भगवान के भक्त के रूप में अपनी आध्यात्मिक यात्रा को बिना किसी बाधा के जारी रख पाता है। यह अपने आप में एक बहुत बड़ा वरदान है, जो सुनिश्चित करता है कि भक्त का पतन नहीं होता।
और देवता चित्त न धरई ।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ॥35॥
- शाब्दिक अर्थ: जो किसी और देवता पर ध्यान न धरकर, केवल हनुमान जी की ही सेवा (भक्ति) करता है, उसे सभी प्रकार के सुख प्राप्त हो जाते हैं।
- भावार्थ और विस्तृत व्याख्या: इस चौपाई का अर्थ अन्य देवताओं का अनादर करना नहीं है, बल्कि यह ‘एकनिष्ठ भक्ति’ की शक्ति पर जोर देती है। जब भक्त पूरी श्रद्धा और एकाग्रता से हनुमान जी की सेवा करता है, तो उसे सभी देवी-देवताओं का आशीर्वाद स्वतः ही मिल जाता है, क्योंकि हनुमान जी में सभी देवों का तेज समाहित है और वे स्वयं राम-भक्ति के द्वार हैं। इसलिए, केवल उनकी सेवा करने मात्र से ही भक्त को सभी भौतिक और आध्यात्मिक सुख (‘सर्ब सुख’) प्राप्त हो जाते हैं।
संकट कटै मिटै सब पीरा ।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥36॥
- शाब्दिक अर्थ: जो कोई भी बल और वीर्य के स्वामी हनुमान जी का स्मरण करता है, उसके सभी संकट कट जाते हैं और सारी पीड़ाएं मिट जाती हैं।
- भावार्थ और विस्तृत व्याख्या: यह एक अत्यंत शक्तिशाली और आश्वासन देने वाली चौपाई है। ‘संकट’ अचानक आने वाली बाहरी विपत्तियों को कहते हैं, जबकि ‘पीरा’ लंबे समय तक चलने वाले आंतरिक और बाहरी कष्टों को। यह पद स्पष्ट करता है कि चाहे परेशानी किसी भी प्रकार की हो, केवल ‘सुमिरन’ (सच्चे हृदय से स्मरण) मात्र से ही उस बलवान और वीर हनुमान की कृपा प्राप्त होती है और सभी कष्टों का निवारण हो जाता है।
जै जै जै हनुमान गोसाईं ।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ॥37॥
- शाब्दिक अर्थ: हे स्वामी हनुमान, आपकी जय हो, जय हो, जय हो! आप मुझ पर एक गुरुदेव की भांति कृपा करें।
- भावार्थ और विस्तृत व्याख्या: तीन बार ‘जय’ का प्रयोग भक्त की भाव-विभोर अवस्था को दर्शाता है और मन, वचन व कर्म से उनकी विजय की घोषणा करता है। ‘गोसाईं’ का अर्थ है इंद्रियों का स्वामी। इस पद का सबसे महत्वपूर्ण अंश है – ‘गुरुदेव की नाईं कृपा करहु’। यहाँ भक्त हनुमान जी को केवल एक रक्षक के रूप में नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक गुरु के रूप में देख रहा है, जो उसे अज्ञान के अंधकार से निकालकर ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाएं।
जो सत बार पाठ कर कोई ।
छूटहि बंदि महा सुख होई ॥38॥
- शाब्दिक अर्थ: जो कोई इस चालीसा का सौ (सत) बार पाठ करता है, वह हर बंधन से छूट जाता है और उसे महान सुख की प्राप्ति होती है।
- भावार्थ और विस्तृत व्याख्या: ‘सत बार’ का अर्थ केवल गिनती नहीं, बल्कि पूर्ण निष्ठा, दृढ़ता और श्रद्धा के साथ किया गया अनुष्ठान है। ‘बंदि’ यानी बंधन केवल भौतिक कारावास नहीं, बल्कि काम, क्रोध, लोभ, मोह और कर्मों का बंधन है, जो हमें इस संसार में बांधे रखता है। इस बंधन से छूटने पर जो ‘महा सुख’ मिलता है, वह कोई क्षणिक सांसारिक सुख नहीं, बल्कि मोक्ष का परमानंद है।
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा ।
होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥39॥
- शाब्दिक अर्थ: जो कोई भी इस हनुमान चालीसा को पढ़ता है, उसे सिद्धि (सफलता) प्राप्त होती है। इस बात के साक्षी स्वयं गौरी के पति, भगवान शंकर हैं।
- भावार्थ और विस्तृत व्याख्या: यह चालीसा की फलश्रुति का प्रमाण है। ‘सिद्धि’ का अर्थ है कार्य की सफलता और मनोकामना की पूर्ति। इस वचन को प्रामाणिकता और गारंटी देने के लिए स्वयं ‘गौरीसा’ (भगवान शिव) को साक्षी बताया गया है। चूँकि हनुमान जी स्वयं शिव के अवतार हैं, इसलिए भगवान शिव स्वयं इस बात की गारंटी देते हैं कि इस चालीसा का पाठ करने वाले को सफलता अवश्य मिलेगी। यह भक्त के विश्वास को कई गुना बढ़ा देता है।
तुलसीदास सदा हरि चेरा ।
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा ॥40॥
- शाब्दिक अर्थ: तुलसीदास जी कहते हैं कि मैं सदा श्री हरि (राम) का दास हूँ। हे नाथ (हनुमान जी)! कृपा करके मेरे हृदय में अपना निवास बनाइए।
- भावार्थ और विस्तृत व्याख्या: यह अंतिम चौपाई में गोस्वामी तुलसीदास जी अपनी पहचान एक भक्त (‘हरि चेरा’) के रूप में स्थापित करते हैं। सभी शक्तियों और लाभों का वर्णन करने के बाद, अंत में वे सबसे बड़ी चीज़ मांगते हैं – ‘कीजै नाथ हृदय महँ डेरा’। यह भक्ति की सर्वोच्च अवस्था है, जहाँ भक्त धन, शक्ति या मोक्ष नहीं, बल्कि अपने हृदय में अपने आराध्य का स्थायी निवास चाहता है, जिससे उसका हृदय स्वयं एक मंदिर बन जाए।
॥ दोहा ॥ (Final Doha)
पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप ।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप ॥
- शाब्दिक अर्थ: हे पवनपुत्र, संकटों को हरने वाले, कल्याण की साक्षात मूर्ति! हे देवताओं के राजा! आप श्री राम, लक्ष्मण और माता सीता के साथ मेरे हृदय में निवास करें।
- भावार्थ और विस्तृत व्याख्या: यह समापन दोहा पूरी चालीसा का सार प्रस्तुत करता है। हनुमान जी को उनके प्रमुख स्वरूपों – ‘पवनतनय’ (शक्ति), ‘संकट हरन’ (रक्षक) और ‘मंगल मूरति’ (शुभता के प्रतीक) – से संबोधित किया गया है। अंत में, भक्त की अंतिम प्रार्थना यह है कि मेरे हृदय में केवल आप ही नहीं, बल्कि आप अपने संपूर्ण आराध्य परिवार – ‘राम लखन सीता सहित’ – निवास करें। यह एक भक्त की सबसे सुंदर कल्पना है, जहाँ उसका हृदय ही अयोध्या बन जाता है।
॥ जय-घोष ॥
बोलो ..
॥ सियावर रामचंद्र की जय ॥
॥ पवनसुत हनुमान की जय ॥
॥ उमापति महादेव की जय ॥
॥ वृंदावन कृष्ण चंद्र की जय ॥
॥ बोलो भाई सब संतन की जय ॥
॥ इति ॥
🙏🙏🙏